ऐतिहासिक माहिल तालाब में गंदगी का अम्बार



उरई शहर का ऐतिहासिक माहिल तालाब आज अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा है. उरई नरेश माहिल द्वारा लगभग दो कोस में बनवाया गया ये तालाब आज महज एक हेक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल में सिमटकर रह गया है. वर्ष २००० में कुछ जागरूक समाजसेवियों और प्रशासनिक अधिकारियों की सक्रियता से इस तालाब के दिन बहुरे थे. आसपास बने मकानों, दुकानों का गन्दा पानी इसमें गिरने से रोका गया और इसी के साथ लगे मंदिरों के तथा शहर के श्रद्धालुओं को इसमें पूजन-सामग्री विसर्जन से रोका गया था. तालाब के किनारे-किनारे बनी पक्की सड़क और हरियाली के कारण यहाँ घूमने वालों की, स्वास्थ्य लाभ लेने वालों का आना लगा रहा. 

माहिल तालाब में बना बुर्ज...दो स्थितियाँ




ये है गंदगी का आलम : माहिल तालाब
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इधर न तो प्रशासन द्वारा तालाब की सफाई की तरफ ध्यान दिया जा रहा है और न ही उस समिति के सदस्यों द्वारा जो किसी समय तालाब की सफाई, उसकी देखभाल के लिए बनाई गई थी. हालत ये है कि आसपास के मकानों, दुकानों का गन्दा पानी इसमें फिर से बहाया जाने लगा है; राहगीरों, दुकानदारों द्वारा मूत्र-विसर्जन करके भी इसे गन्दा किया जा रहा है; श्रद्धालुजन पूजन-सामग्री का विसर्जन करके भी इसे और गन्दा कर रहे हैं. तालाब के पानी की निकासी की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण इसमें भरा पानी भीषण गरमी पड़ने पर ही सूखता है. हाल की जबरदस्त बारिश से भरे तालाब का जलस्तर इसमें गिरते गंदे जल के कारण लगातार बढ़ता जा रहा है. अब आलम ये है कि तालाब के मध्य में बना बुर्ज, जो एक छोटे से पुल के माध्यम से जुड़ा हुआ था, आज पूरी तरह से डूब चुका है. 

माहिल तालाब के आसपास बने मंदिर, दुकान, मकान




माहिल तालाब में फेंकी गई गंदगी, पॉलीथीन
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प्रशासन द्वारा, नगर पालिका द्वारा तालाब की सफाई के लगातार आश्वासन दिए जाते रहे; इस ऐतिहासिक स्थल को पिकनिक स्पॉट के रूप में सजाने के सपने नगरवासियों को दिखाए जाते रहे; म्यूजिकल फाउंटेन लगाने के सब्जबाग भी दिखाए जाते रहे; कुछ मीडियाप्रेमी सामाजिक संगठन और सामाजिक नागरिकों द्वारा यदाकदा फोटो खिंचवाने, खबर बनवाने के लिए श्रमदान का ड्रामा भी किया जाता रहा किन्तु तालाब की देखभाल का स्थायी समाधान नहीं निकला गया. आज स्थिति ये है कि तालाब का पानी पूरी तरह से बदबूदार हो गया है; आसपास घास बुरी तरह से उग आई है; पक्की सड़क टूटी-उखड़ी है; रंगीन मछलियाँ मर चुकी हैं; बत्तखें कहीं भटक गईं है और तालाब फिर किसी इलाज के इंतज़ार में है. यहाँ दोष सिर्फ प्रशासन का नहीं है, दोष नगर पालिका का नहीं है; दोष सिर्फ उस समिति का नहीं है, दोष सामाजिक संगठनों का नहीं है दोष नागरिकों का भी है जो अपने शहर की ऐतिहासिक धरोहर को गंदगी, अपशिष्ट, मल-मूत्र, कचरे, पॉलीथीन, पूजन-सामग्री के द्वारा स्वयं नष्ट करने में लगे हुए हैं. 
@ जय बुन्देलखण्ड (04-11-2013)

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