गाँधी जी की पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी का आयोजन

गाँधी जी की पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी का आयोजन

‘गाँधीजी के विचारों को आज भी प्रासंगिक माना जा सकता है क्योंकि आज भी सम्पूर्ण विश्व को शांति, अहिंसा, प्रेम और भाईचारे की आवश्यकता है। सम्पूर्ण विश्व किसी न किसी रूप में हिंसा, आतंक, अत्याचार का शिकार है। महात्मा गाँधी ने विचारों को मात्र ऊपरी स्तर पर ही प्रसारित नहीं किया था वरन् उन्हें अपने जीवन में आत्मसात् भी किया था।’ उक्त विचार महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए युवा समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक सुभाष चन्द्रा ने व्यक्त किये। सामाजिक संस्था दीपशिखा द्वारा ‘महात्मा गाँधी के विचारों की वर्तमान परिवेश में प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में सुभाष चन्द्रा ने आगे बोलते हुए कहा कि वर्तमान में जहाँ व्यक्ति स्वार्थ पूर्ति में ही कार्य करने में लगा रहता है वहीं महात्मा गाँधी ने अपने सम्पूर्ण सुखों का त्याग करते हुए न केवल देश के लिए बल्कि देश के बाहर विदेश में भी भारतवंशियों के लिए कार्य किये। उनके कार्यों को आज प्रयोगात्मक रूप दिये जाने की आवश्यकता है साथ ही युवा पीढ़ी को यह समझाना होगा कि तत्कालीन परिस्थितियों में जो विचार गाँधी जी ने दिये वे आज भी प्रासंगिकता रखते हैं।
डी0वी0सी0, उरई हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने गाँधी जी के विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मतभेद होते हैं, गाँधीजी को लेकर भी लोगों में मतभेद की स्थिति है। इसके बाद भी कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में त्याग और वास्तविकता को अपनाया। गाँधी जी ने देश के सोये लोगों में एक नई चेतना का संचार किया और उन्हें आजादी की लड़ाई को प्रेरित किया। यह बात और है कि उन्होंने अपने शांति और अहिंसा के प्रयासों में कभी भी कमी नहीं होने दी और सदैव इसको आत्मसात किये रहे।
युवा शिक्षाविद् डा0 राजेश पालीवाल ने कहा कि महात्मा गाँधी को एक व्यक्ति के रूप में ही देखा जाना चाहिए। उनके विचारों और कार्यों की बुराई करने वाले उनमें किसी देवत्व का रूप तलाशते हैं और उनके कार्यों के अच्छे बुरे स्वरूप को देखते हैं। महात्मा गाँधी ने अहिंसा, प्रेम और शांति को अपनाने की बात कही थी और इसका अमल वे स्वयं भी ताउम्र करते रहे। यह बात और है कि उनके किन्हीं कार्यों को आज अहिंसात्मक रूप देकर, नकारात्मक रूप देकर गाँधीजी के विचारों को विकृत करने का प्रयास किया जा रहा है जो निन्दनीय है।
बैठक की अध्यक्षता कर रहे डी0वी0सी0, उरई के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डा0 आदित्य कुमार ने कहा कि किसी समग्र रूप में गाँधी जी के विचारों को देखा जाये तो हमें आसानी से उनमें वे सभी विचार देखने को मिलेंगे जो आज भी प्रासंगिकता रखते हैं। होता यह है कि हम गाँधी जी के जीवन से जुड़ी कुछ विवादित घटनाओं का ही उदाहरण लेकर उनके विचारों को गलत सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। हम उन बातों की ओर ध्यान ही नहीं देते जो उनके दृढ़ चरित्र की पहचान हैं। देश से बाहर दक्षिण अफ्रीका में भी देश के दबे-कुचले लोगों के लिए संघर्ष, देश लौटने के बाद अपना सर्वस्व छोड़कर देश की आजादी में जुटना, गरीब, दबे, कुचले लोगों की मदद करना आदि वे कार्य हैं जिन्हें हम विस्मृत करते जा रहे हैं। आज देश की राजनीतिक व्यवस्था में गाँधीजी के विचारों की तरह दृढ़ता और आत्मविश्वास की आवश्यकता है।
सामाजिक संस्था दीपशिखा के अध्यक्ष युवा समाजसेवी और साहित्यकार डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि गाँधीजी के विचारों से युवा पीढ़ी को परिचित करवाने की आवश्यकता है। चूँकि वर्तमान युग जिस तरह से स्वार्थपूर्ति का अखाड़ा बनता जा रहा है, ऐसे में आज की युवा पीढ़ी को विश्वास ही नहीं होता होगा कि आज से कई वर्ष पहले गाँधीजी ने अपनी अहिंसा, प्रेम, शांति के द्वारा देश को आजाद कराने में महती भूमिका निभाई।
गोष्ठी के अन्त में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि प्रत्येक माह में किसी एक समकालीन मुद्दे पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाया करेगा। जिसमें शहर के तथा बाहर के प्रबृद्धजनों को विचारों के आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित किया जाया करेगा। इस विचार गोष्ठी में जयप्रकाश, डा0 ममता, डा0 हर्षेन्द्र सिंह, आशीष गुप्ता, डा0 प्रवीण सिंह जादौन, नन्दराम, अखिलेश कुमार, आदि उपस्थित थे।

साहित्यिक पत्रिका 'स्पंदन' के बुन्देलखण्ड अंक के लिए रचनाओं का आमंत्रण

उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका स्पंदन का आगामी अंक ‘बुन्देलखण्ड विशेषांक’ के रूप में प्रकाशित किया जाना है। यह अंक मार्च 2010 के पहले सप्ताह में पाठकों को उपलब्ध हो जायेगा। यह जानकारी स्पंदन के प्रबन्ध सम्पादक डा0 लखनलाल पाल ने दी।

उन्होंने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि इस अंक के लिए लगातार रचनाएँ आमंत्रित की जा रहीं हैं। रचनाकारों से अनुरोध है कि वे ऐसी रचनाएँ भेजें जिनके द्वारा बुन्देलखण्ड की संस्कृति की झलक मिलती हो। रचनाओं में लेख, कहानी, कविता, ग़ज़ल, लघुकथा, संस्मरण आदि सहित साहित्य की विविध विधाओं का स्वागत है।

डा0 लखनलाल ने स्पंदन के समय से प्रकाशन के लिए रचनाकारों से समय का विशेष ध्यान रखने का भी अनुरोध किया है। उनका कहना है कि यदि रचनाएँ 20 फरवरी 2010 तक प्राप्त हो जायेंगीं तो उनका प्रकाशन इसी अंक में किया जा सकेगा। स्पंदन के समय से प्रकाशन के लिए समय का विशेष ध्यान रखना होगा।

रचनाओं को भेजने के लिए डाक का अथवा ई-मेल का प्रयोग किया जा सकता है। डाक से रचनाओं के लिए निम्न पते पर रचनाएँ भेजें -

डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
सम्पादक - स्पंदन
110 रामनगर, सत्कार के पास,
उरई (जालौन) उ0प्र0 पिन 285001

जो रचनाकार ई-मेल से रचनाओं को भेजना चाहते हैं वे कृपया निम्न पते पर रचनाओं को भेजें।

spandan.kss@gmail.com
spandan_kss@rediffmail.com

ई-मेल से रचनाएँ भेजने वाले रचनाकार इस बात का विशेष ध्यान दें कि रचनाएँ कृतिदेव 10 में हों तथा पेजमेकर 6.5 में अथवा एम0एस0 वर्ड फाइल के रूप हों।

डा0 लखनलाल ने एक विशेष बात पर जोर दिया कि जो रचनाकार बुन्देली भाषा में गद्य रचनाएँ प्रेषित करेंगे उनको उचित मानदेय भी प्रदान किया जायेगा। उनका कहना था ऐसी व्यवस्था बुन्देली भाषा के उन्नयन हेतु स्पंदन के सम्पादक मण्डल द्वारा निर्धारित की गई है।

रचनाकार रचना भेजते समय अपना पूरा डाक का पता स्पष्ट रूप से भेजें ताकि स्पंदन के प्रकाशन के बाद उनको प्रति भेजी जा सके।

स्पंदन को ब्लाग पर यहाँ से पढ़ा जा सकता है।

राष्ट्रीय सेवा योजना छात्रा इकाई का शिविर सम्पन्न

राष्ट्रीय सेवा योजना छात्रा इकाई का शिविर सम्पन्न

‘‘देश में तमाम सारी समस्याओं के साथ ही स्त्री-पुरुष अनुपात में भरी अन्तर भी एक समस्या बना हुआ है। इस समस्या के पीछे कन्या भ्रूण हत्या/कन्या शिशु हत्या एक प्रमुख कारण है। वंश-वृद्धि की खातिर पुत्र मोह, दहेज समस्या के चलते भी कन्याओं की अवहेलना की जाती है। हमें समाज से इस भेदभाव की धारणा को मिटा कर ही लिंगानुपात की समस्या को रोका जा सकता है।’’ उक्त विचार विषय-विशेषज्ञ के रूप में डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरई की राष्ट्रीय सेवा योजना के एकदिवसीय शिविर में व्यक्त किये। राष्ट्रीय सेवा योजना की प्रथम और द्वितीय इकाई (छात्रा) के संयुक्त एक दिवसीय शिविर में डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ‘कन्या भ्रूण हत्या-एक सामाजिक बुराई’ विषय पर वक्तव्य दे रहे थे। डा0 कुमारेन्द्र ने आगे कहा कि लड़कियों को इस बात को छोड़ देना चाहिए कि वे किसी भी मामले में लड़कों से कम हैं। आज विश्व के किसी भी क्षेत्र में हम लड़कियों की उपस्थिति को आसानी से देख सकते हैं। शिक्षित लड़कियों को अपने घरों-परिवारों से ही पुत्र मोह की धारणा को समाप्त कर कन्याओं के प्रति सकारात्मक वातावरण तैयार करना होगा। आज लड़कियों को किसी भी क्षेत्र में आसानी से सफलता प्राप्त करते देखा जा सकता है। अब आवश्यकता उनको प्रोत्साहित करने की है न कि उनके साथ भेदभाव करने की।
(बाएं से - डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ0 जयश्री पुरवार, डॉ0 अनिल कुमार श्रीवास्तव, प्राचार्य)

शिविर में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ0 जयश्री पुरवार ने आँकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि देश के साथ-साथ प्रदेश में कन्याओं की जो संख्या है उसके मुकाबले हमारे जिले में यह संख्या और भी कम है। जालौन में यह आँकड़ा प्रति एक हजार पर 889 पर आकर टिक गया है। यह स्थिति चिन्तनीय है जो आने वाले समय में महिलाओं के प्रति भेदभाव को और भी बड़ा देगी। महिलाओं/कन्याओं के प्रति इस कारण से हिंसा और भी बढ़ेगी। हमें हर हालत में इस बुराई को रोकना ही होगा। जिस तरह से यह संख्या कम हो रही है वह सकीनन हमारे लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। इसके बाद भी हम किसी न किसी रूप में बेटियों को मारने का काम कर रहे हैं। इस अवसर पर डा0 जयश्री पुरवार ने एक कविता सुना कर बेटियों की महत्ता पर भी प्रकाश डाला।

डी0वी0 कालेज, प्रबन्धकारिणी के अवैतनिक मंत्री डा0 देवेन्द्र कुमार ने कहा कि माता-पिता को अपनी बच्चियों के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए। आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जहाँ महिलायें पुरुषों से पीछे हों। ऐसे में उनके साथ भेदभाव की स्थिति को अपनाना गलत है।

डी0 वी0 कालेज के प्राचार्य डा0 अनिल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि हमें आज सुभाष जयन्ती पर इस संकल्प को लेना होगा कि हम जो भी कार्य करेंगे वह ईमानदारी से करेंगे। यहाँ हमारा तात्पर्य ईमानदारी से पैसे रुपये के लिए नहीं है। हमें अपने रोज के कामों में भी ईमानदारी रखनी होगी। आज लड़कियाँ हर मामले में लड़कों से हर क्षेत्र में आगे हैं, ऐसे में वे अपने मन से इस विचार को त्याग दें कि वे लड़कों से कमजोर हैं।

राष्ट्रीय सेवा योजना प्रथम इकाई की कार्यक्रम अधिकारी डा0 मंजू जौहरी ने कहा कि लड़कियों को इस योजना के माध्यम से देश सेवा को प्रेरित तो किया ही जाता है साथ ही उन्हें बुराइयों से लड़ने को भी प्रेरित किया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या समाज में फैली एक बहुत बुरी बीमारी है। इस बीमारी को दूर करने के लिए स्वयं महिलाओं को ही आगे आना होगा।

राष्ट्रीय सेवा योजना द्वितीय इकाई की कार्यक्रम अधिकारी डा0 स्मिता जायसवाल ने कहा कि पुत्र की कामना ने ही परिवार में कन्याओं को दायम दर्जा प्रदान कर रखा है। हालांकि अब ऐसा कम हो रहा है किन्तु इसके बाद भी कुछ परिवारों में ऐसी स्थिति दिखाई देती है जिससे साफ तौर पर दिखाई देता है कि लड़के और लड़कियों में भेद है। कई परिवारों में पढ़ने, लिखने, खाने, पीने तक में भेदभाव किया जाता है ऐसा गलत है। हमें लड़कियों को इस बारे में अधिक से अधिक जागरूक करना है कि वे अपने अधिकारों को समझें और इस भेदभाव से समाज से दूर करने में अपना सहयोग करें।
(शिविर में उपस्थित छात्राएं)

शिविर में विचार गोष्ठी में लड़कियों ने भी अपने विचार दिये। कु0 सोनम अग्रवाल ने कहा कि परिवार में पुत्र की कामना मोक्ष प्राप्ति के लिए तो होती ही है साथ ही उसे व्यवसाय और अन्य आर्थिक मदद के लिए भी स्वीकारा जाता है। कु0 कंचन ने कहा कि दहेज की समस्या को मिटाये बिना कन्या भ्रूण हत्या को नहीं रोका जा सकता है। रीना राजपूत ने कहा कि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है, यहाँ किसी भी काम के लिए लड़कियों को कमजोर और लड़को को सक्षम माना गया है, अब इस सोच को बदलना होगा।

कार्यक्रम के अन्त में दोनों इकाइयों की छात्राओं ने एक जागरूकता रैली निकाली। इसमें छात्राओं ने अपने हाथों में विविध नारे लिखी तख्तियों, पोस्टरों के द्वारा कार्यक्रम अधिकारियों डा0 मंजू जौहरी और डा0 स्मिता जायसवाल के नेतृत्व में ग्रामीण इलाके में जाकर लोगों को जागरूक किया। शिविर में प्रथम और द्वितीय इकाई की आरती उदैनिया, प्रियंका देवी, शबनून खातून, नीलू, मंजूलता, रश्मिदेवी, रमा राजपूत, सोनम, पूनम, शिवानी गुप्ता, कविता, प्रगति विश्नोई, अंजू यादव, प्रीति वर्मा, शिवानी आदि सहित सभी छात्राएँ उपस्थित थी। Justify Full

सुभाषचंद्र बोस जयंती पर विचार गोष्ठी का आयोजन

राजनीति विज्ञान परिषद्, डी0 वी0 सी0 उरई के तत्वावधान में आज दिनांक 22 जनवरी 2010 को राजनीतिविज्ञान विभाग में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जसन्ती के पूर्व दिवस पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘भारतीय स्वाधीनता में सुभाषचन्द्र बोस का योगदान’ विषय पर आयोजित गोष्ठी का आरम्भ मुख्य वक्ता डा0 नगमा खानम ने नेताजी के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं को सुनाने के साथ किया। ध्यातव्य है कि डा0 नगमा खामन का शोधकार्य नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर ही आधारित है। डा0 नगमा का कहना था कि नेताजी एक प्रखर वक्ता, मेधावी व्यक्तित्व एवं राष्ट्र के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। उनकी नेतृत्व क्षमता के कारण महात्मा गाँधी को भी मुँह की खानी पड़ी और 1936 में त्रिपुरी कांग्रेस में पट्टाभिसीतारमैया को नेताजी के सामने हार का सामना करना पड़ा था। इस हार को महात्मा गाँधी ने अपनी हार स्वीकारा था। इसके बाद भी नेताजी गाँधी जी का बहुत सम्मान करते थे, यहाँ तक कि उन्हें सबसे पहले राष्ट्रपिता की उपाणि देने वाले नेता जी ही थे। विदेशी धरती पर आजाद हिन्द फौज का गठन और उसका नेतृत्व करना नेताजी की सांगठनिक क्षमता को ही दर्शाता है जो अतुलनीय है।
(बाएं से डॉ नीता गुप्ता, मुख्य वक्ता डॉ नगमा खानम, परिषद् अध्यक्ष दानिश जफ़र)


मुख्य अतिथि के रूप में समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा0 आनन्द खरे ने नेताजी को भारतीय राजनीति का शिखर पुरुष बताया। उनका कहना था कि नेताजी की तुलना तत्कालीन और वर्तमान के किसी भी राजनेता से नहीं की जा सकती है। कोई भी स्वतन्त्रता सेनानी उनके पासंग भी नहीं ठहरता है। युवाओं को आज उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
(बाएं से मुख्य अतिथि डॉ आनंद खरे, राजनीती विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ आदित्य कुमार)

राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डा0 आदित्य कुमार ने भारतीय स्वतन्त्रता में सशस्त्र संघर्षों के इतिहास पर प्राकाश डालते हुए कहा कि नेताजी द्वारा गठित आजाद हिन्द फौज द्वारा किया गया संघर्ष सर्वाधिक संगठित एवं सशक्त प्रयास था। देश में भी विविध प्रयास किये जाते रहे किन्तु सभी के पीछे कोई न कोई निजी हित छिपे थे। ऐसे में विदेशी धरती पर जाकर सिर्फ देशहित में फौज का गठन और संघर्ष वाकई देशप्रेम की अद्भुत मिसाल है। उन्होंने आगे कहा कि यदि द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों की पराजय न हुई होती तो भारत का भविष्य कुछ और ही होता और जिस भारत का निर्माण होता वह निश्चय ही नेताजी के सपनों का भारत होता।

हिन्दी विभाग के डा0 रामप्रताप सिंह ने कहा कि नेताजी की संकल्पशक्ति और नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी। उनके लिए दो पंक्तियाँ ही काफी हैं-‘‘जिस ओर जवानी चलती है, इतिहास वहीं मुड़ जाता है।’’

(डॉ रामप्रताप सिंह)


डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि नेताजी विवेकानन्द की तरह ही प्रखर चिन्तक और राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्तित्व थे। हमें उनके व्यक्तित्व से कुछ न कुछ सीख लेने की आवश्यकता है। इस कारण बिना बात के उनकी मृत्यु को विवाद का विषय बनाकर हम नेताजी का ही अपमान कर रहे हैं। यह सभी को भली-भाँति ज्ञात है कि यदि नेताजी देश स्वतन्त्र होने के बाद सामने आ भी गये होते तो अन्तरराष्ट्रीय दवाब के आगे उन्हें अपराधी ही स्वीकार करना होता। इससे अच्छा है कि हम उनके आदर्शों को अपनायें और उस महान व्यक्तित्व को सम्मान दें।

राजनीतिविज्ञान परिषद् के अध्यक्ष दानिश जफर ने कहा कि नेताजी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हमेशा ही रहेंगे, हम युवाओं को उनसे बहुत कुछ सीखने का प्रयास करना चाहिए।

अंग्रेजी विभाग की डा0 नीता गुप्ता
ने कहा कि आजाद हिन्द फौज में महिलाओं की सहभागिता दर्शाती है कि नेता जी ने महिलाओं को भी बराबरी का दर्जा देकर उन्हें भी पर्याप्त सम्मान दिया था। आज लोगों को इस बात से भी सीख लेने का प्रयास करना चाहिए।

परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे हिन्दी विभाग के डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने कहा कि भारतीय राजनीति के अलावा भी विश्व राजनीति में नेताजी जैसे व्यक्तित्व के दर्शन होना दुर्लभ है। यह हमारे देश का सौभाग्य है कि हमें नेताजी जैसा संघर्षशील, प्रखर और कुशल नेतृत्वकर्ता मिला जिसने अपनी क्षमताओं से तत्कालीन आई0सी0एस0 की परीक्षा को पास करके भी दिखा दिया। ऐसे महान व्यक्ति को इन पंक्तियों के साथ श्रद्धांजलि दी जा सकती है कि ‘शाखों से टूट जायें, पत्ते नहीं हैं हम। आँधियों से कह दो औकात में रहें।।’
(बाएं से डॉ वीरेन्द्र सिंह यादव, डॉ आनंद खरे)


परिचर्चा में रविकांत, रणविजय सिंह, सत चित आनन्द ने भी अपने विचार प्रकट किये। संचालन डा0 राममुरारी चिरवारिया ने किया।






वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की कार्यशाला संपन्न - दूसरा दिन

दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरई द्वारा ‘मानविकी और समाजविज्ञान में तकनीकी शब्दावली की उपयोगिता’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन दिनांक 20 जनवरी 2010 को प्रारम्भ हुए तुतीय तकनीकी सत्र में वैज्ञानिक अधिकारी डा0 अवनीश सिंह ने आयोग और उसके विविध क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शब्द निर्माण एक प्रक्रिया है, यह प्रक्रिया एकाएक नहीं होती है। इसके लिए विविध विषय-विशेषज्ञों का आपसी विचार-विमर्श होता है और इसके बाद ही किसी नये शब्द का निर्माण किया जाता है। आयोग इस समय एक परिभाषकोश का निर्माण कर रहा है।
(वैज्ञानिक अधिकारी डा0 अवनीश सिंह)
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ऋषिकेश से विषय-विशेषज्ञ के रूप में कार्यशाला में उपस्थित हुई डा0 पूजा त्यागी ने कहा कि शब्दों की सजगता और चेतना के साथ निर्माण करने की आवश्यकता होती है। शब्दों की गति को समझना बहुत ही आवश्यक होता है। बिना गति को समझे यदि शब्दों का निर्माण किया जाता है तो ऐसी शब्दावली क्लिष्टता पैदा करती है। इस मुश्किल से बचने के लिए आयोग को सरल शब्दों का निर्माण करना चाहिए।
(विषय-विशेषज्ञ पूजा त्यागी)
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इस तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे डा0 राजेन्द्र कुमार पुरवार ने कहा कि शब्दों के नये-नये रूप आने से नये शब्द तो चलन में आ जाते हैं किन्तु बहुत से शब्दों का लोप हो जाता है। आयोग अपना कार्य करता है, इसके साथ ही जनमानस का यह कार्य भी होना चाहिए कि शब्द और संस्कृति को बनाये रखा जाये। इसके अभाव में आज बहुत सी भाषाएँ और संस्कृतियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।
(डा0 राजेन्द्र कुमार पुरवार)
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कार्यशाला के चतुर्थ सत्र में कानपुर क्राइस्टचर्च डिग्री कालेज के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष, डा0 ए0के0 वर्मा ने तकनीकी शब्दों की उपयोगिता के बारे में बताते हुए कहा कि अनुवाद के समय इन शब्दों की बहुत ही आवश्यकता होती है। इसके साथ साथ शब्दों के द्वारा भाव सम्प्रेषण का कार्य भी होता है। शब्द विचार को सरल और बोधगम्य बनाते हैं, इस दृष्टि से आयोग को सरल शब्दों के निर्माण पर भी जोर देना चाहिए। आयोग बहुत अच्छा कार्य कर रहा है किन्तु इसको अभी आम आदमी से जोड़ पाने में वह विफल रहा है।
(कानपुर क्राइस्टचर्च डिग्री कालेज के डा0 ए0के0 वर्मा)
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इसके अलावा इस तकनीकी सत्र में भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के राजनीति विज्ञान विभाग के डा0 रिपुसूदन सिंह, दयानन्द वैदिक महाविद्यालय, उरई मनोविज्ञान विभाग के डा0 तारेश भाटिया, लक्ष्मीचरण हुब्बलाल महाविद्यालय, करसान के बी0एड0 विभाग के सलिल तिवारी तथा अध्यक्षता कर रहीं इतिहास विभाग की अध्यक्ष डा0 शारदा अग्रवाल ने भी विचार व्यक्त किये।

समापन सत्र में स्थानीय संयोजक डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने कार्यशाला की विस्तृत रिपोर्ट सभी के समक्ष रखी। इसके द्वारा उन्होंने आयोग के सामने सुझाव रखे कि कार्यशालाओं का अधिक से अधिक आयोजन किया जाये। इंटरनेट पर भी शब्दावली को डाला जाये जिससे आम आदमी भी आसानी से आयोग की शब्दावली से जुड़ सके। इसके साथ-साथ आयोग द्वारा एक शोध-पत्रिका निकालने का भी सुझाव दिया गया।

आयोग की ओर से आये वैज्ञानिक अधिकारी डा0 ब्रजेश सिंह ने कहा कि यहाँ का माहौल बहुत ही अच्छा लगा और जल्द ही किसी अन्य विषय को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा। अपने प्रकाशनों के बारे में बताते हुए कहा कि आयोग की ओर से शीघ्र ही अपनी बेव साइट बनाने की दिशा में कार्य चल रहा है। प्रकाशनों को आयोग के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
(वैज्ञानिक अधिकारी डा0 ब्रजेश सिंह)
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समापन-सत्र में मुख्य अतिथि डा0 देवेन्द्र कुमार, विशिष्ट अतिथि डा0 ब्रजेश सिंह, डा0 शिवकुमार चैधरी, अध्यक्ष डा0 हरीमोहन पुरवार, प्राचार्य डा0 अनिल कुमार श्रीवास्तव भी मंचासीन रहे तथा अपने विचार प्रकट किये।

कार्यक्रमों में तुतीय तकनीकी सत्र का संचालन डा0 आर0 के0 गुप्ता ने, चतुर्थ सत्र का संचालन डा0 अनुज भदौरिया ने तथा समापन सत्र का संचालन डा0 अलका रानी पुरवार ने किया।








वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की कार्यशाला - प्रथम दिवस

‘‘हिन्दी और अन्य भाषाओं में तकनीकी शब्दावली का विकास करने के लिए सन् 1961 में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग का मुख्य कार्य हिन्दी के लिए पारिभाषिक तथा तकनीकी शब्दों का निर्माण करना है। विषय-विशेषज्ञों द्वारा आपसी विचार-विनिमय के बाद अंग्रेजी शब्दों का अनुवाद कर हिन्दी शब्दों का निर्माण किया जाता है।’’ उक्त विचार वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के वैज्ञानिक अधिकारी डा0 शिवकुमार चौधरी द्वारा व्यक्त किये गये। डा0 शिवकुमार चौधरी यहाँ दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरई द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन दिनांक 19 जनवरी 2010 में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। ‘मानविकी और समाजविज्ञान में तकनीकी शब्दावली की उपयोगिता’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में डा0 चौधरी ने कहा कि कंठलंगोट, लौहपथगामिनी, ध्रूमदण्डिका जैसे शब्द आयोग द्वारा नहीं बनाये गये हैं। ऐसे शब्दों को लोग आपस में हास-परिहास द्वारा प्रयोग करते हैं। आयोग शब्द को सर्वमान्य रूप में स्वीकार करने की ओर बल देता है।
(शिवकुमार चौधरी, मुख्य वक्ता)
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स्थानीय संयोजक डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुवाद के कार्य में तथ्यों और संवेदना का ध्यान रखा जाना चाहिए। अनुवाद मात्र इस कारण से न हो कि किसी अंग्रेजी शब्द को हिन्दी में बनाना है। बहुत से अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं के शब्द हम रोजमर्रा के कार्यों में प्रयोग करते हैं और वे अब अन्तरराष्ट्रीय रूप में भी मान्य हैं, उन्हें उसी रूप में प्रयोग करना चाहिए जैसे-रेडियो, प्लेटफार्म, बस, टिकट, पेंशन आदि।
(वीरेन्द्र सिंह यादव, स्थानीय संयोजक)
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मुख्य अतिथि डा0 देवेन्द्र कुमार ने कहा कि शब्दों को जीवन में आवश्यक माना जाता है क्योंकि एक व्यक्ति जन्म से अन्तिम समय तक शब्दों के द्वारा ही अभिव्यक्ति करता रहता है। इस कारण शब्दों का सही और मान्य स्वरूप ही प्रयोग करना चाहिए।
(देवेन्द्र कुमार, मुख्य अतिथि)
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इस अवसर पर डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘इक्कीसवीं सदी का भारत: मुद्दे, विकल्प और नीतियाँ’ का भी विमोचन किया गया।
(पुस्तक विमोचन)
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पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने बताया कि इस पुस्तक में 69 लेख विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं। इसमें अर्थव्यवस्था, पंचायती राज, जनसंख्या वृद्धि, समलैंगिकता, कन्या भ्रूण हत्या, आपदा नियंत्रण, बाल विकास आदि विशेष हैं। इन लेखों के द्वारा आम आदमी के जीवन से लेकर भूमण्डलीकरण, आधुनिकता, जनसंचार, पत्रकारिता आदि की व्यापक चर्चा की गई है।
(पुस्तक पर चर्चा करते कुमारेन्द्र)
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डी0वी0 कालेज, उरई के प्राचार्य डा0 अनिल कुमार श्रीवास्तव ने गोष्ठी की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शब्दों के मानक रूप के प्रयोग करने से सभी को सुविधा होती है। इससे आपसी चर्चा में भी दिक्कत की स्थिति नहीं आती है।
(अनिल कुमार श्रीवास्तव, प्राचार्य)
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कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे डा0 हरीमोहन पुरवार ने कहा कि कुछ शब्द समय के साथ लुप्त हो जाते हैं। यह बात इसको सिद्ध करती है कि शब्दों का भी एक व्यक्ति की तरह से जीवन होता है। वह भी समय के साथ जीवित रहता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए मोटरसाइकिल के लिए कभी उपयोग होने वाला फटफटिया शब्द आज बिलकुल नहीं सुनाई देता है। इसी तरह पलंग के लिए इस्तेमाल होने वाला खटिया अब कम से कम सुनाई देता है। शब्दों को जीवित रखने के लिए आवश्यक है कि उनका लगातार प्रयोग किया जाता रहे।
(हरिमोहन पुरवार, अध्यक्ष)
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तकनीकी सत्र में डा0 एस0 पी0 सक्सेना, पूर्व उप-निदेशक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, ने शब्दों के प्रयोग, उनके अर्थ पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने वर्कशाप शब्द को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस शब्द को कार्यशाला, कर्मशाला के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि जब बौद्धिक चर्चा होती है वहाँ कार्यशाला शब्द का प्रयोग होगा और जहाँ आटोमोबाइल की बात होगी वहाँ कर्मशाला का उपयोग होगा। इसी तरह उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय शब्द के बारे में बताते हुए कहा कि जब एक देश के भीतर की ही बात हो तो वहाँ अन्तर्राष्ट्रीय शब्द का प्रयोग होगा और जब दो देशों के आपसी सम्बन्धों की बात की जाये तो वहाँ अन्तरराष्ट्रीय शब्द लिखा जायेगा।
(एस पी सक्सेना, पूर्व उप निदेशक)
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इस सत्र के विषय-विशेषज्ञ, डी0वी0 कालेज के डा0 आदित्य कुमार ने कहा कि आयोग हिन्दी के प्रामाणिक शब्द तो बना रहा है किन्तु वे अभी जनसामान्य में ज्यादा प्रचलित नहीं हैं। इसके लिए आयोग का यह कार्य होना चाहिए कि वह शब्दों को जन सामान्य तक भी पहुँचाने का प्रयास करे। बच्चों को भी बचपन से पाठ्यक्रम के द्वारा मान्य शब्दों से परिचय करवाया जाना चाहिए, बच्चों के लिए बनाई जा रही वैज्ञानिक फिल्मों में भी तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(आदित्य कुमार, विषय-विशेषज्ञ)
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तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहीं डा0 जयश्री पुरवार ने कहा कि आयोग शब्दों के स्वरूप निर्धारण को लेकर बहुत ही अच्छा काम कर रहा है किन्तु इसके बाद भी ये शब्द जन जन तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। कुछ शब्द तो इतने कठिन होते हैं कि उनको समझने में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इस बारे में भी आयोग को ध्यान देना चाहिए।

कार्यशाला में ऋषिकेश से डा0 पूजा त्यागी, बरेली से डा0 दयाराम, झाँसी से डा0 किशन यादव, कानपुर से डा0 मनोरमा, दिल्ली से डा0 जयसिंह, डा0 ब्रजेश सिंह, ललितपुर से डा0 पुनीत बिसारिया, लखनऊ से डा0 रिपुसूदन सिंह के अतिरिक्त स्थानीय प्रतिभागी और विद्वतजन् भी उपस्थित रहे।

कार्यशाला के उदघाटन सत्र का संचालन डा0 अलकारानी पुरवार ने तथा तकनीकी सत्र का संचालन डा0 आनन्द खरे ने किया।
(अलका रानी पुरवार, संचालक)
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सूचना अधिकार सम्बन्ध में बैठक का आयोजन

सूचना अधिकार सम्बन्ध में बैठक का आयोजन


सूचना अधिकार अधिनियम के सफल क्रियान्वयन और आम जनता के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी जागरूकता लाने के उद्देश्य से सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान का संचालन डा0 डी0 के0 सिंह और डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर द्वारा किया जा रहा है। इस अभियान में देश के सात राज्यों से लोग जुड़े हैं जो सूचना अधिकार अधिनियम को लेकर लगातार सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में और जानकारी देने के लिए आज दिनांक 19 जनवरी को सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान के निदेशक डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर के आवास पर इस अभियान के सदस्यों की नियमित बैठक का आयोजन किया गया।

सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान के संयोजक डा0 डी0 के0 सिंह ने कहा कि वर्तमान में सूचना के अधिकार अधिनियम का सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा है। जो लोग कहते हैं कि इस अधिनियम का दुरुपयोग होने का खतरा है, उनको शायद जानकारी नहीं है कि अभी इस अधिनियम का उपयोग ही नहीं हो सका है तो उसके दुरुपयोग की कोई सम्भावना ही नहीं। अभी तो लोगों में इस अधिकार के प्रति जागरूकता ही नहीं आई है। आवश्यकता इस अधिनियम के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जानकारी देने की है। डा0 डी0 के0 सिंह ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा यह अधिनियम मात्र दिखावे के लिए बनाया गया है। इस कानून के द्वारा आम आदमी को अपने अधिकार के प्रति सचेत होने का अवसर दिया गया है, उसे बस इसके उपयोग करने की ओर ध्यान देना होगा। उन्होंने आगे कहा कि सूचना माँगते समय हमेशा यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमें कौन सी सूचना माँगनी है? ऐसी सूचनाओं के माँगने पर अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहिए जिनका हमारे लिए कोई अर्थ नहीं हो। अच्छा हो कि कम से कम और सार्थक सूचनाओं को माँगा जाये।

अभियान में सक्रिय रूप से जुड़े सुभाष चन्द्रा ने कहा कि अभी भी आम आदमी अपने अधिकारों को जानने-समझने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहा है। वह प्रत्येक कार्य के लिए नेताओं की तलाश में भटकता रहता है। जहाँ कहीं काम नहीं होता है वहाँ वह पैसे का अथवा दलाल का सहारा लेता है। इससे उसके समय और धन दोनों का अपव्यय होता है। आम आदमी को चाहिए कि वह इस अधिनियम का भरपूर इस्तेमाल करे। इससे शासन व्यवस्था में लगे भ्रष्ट लोगों को भी सबक मिल रहा है। सूचना माँगने के प्रति जागरूकता आने से जनता के धन का दुरुपयोग होंना रुक सकता है। अभी तक तो अधिकारी और अन्य विभागों के कर्मचारी जनता के धन को स्वयं का धन समझते थे और किसी भी तरह की जानकारी देने से साफ तौर पर मना कर देते थे पर अब ऐसा नहीं है। अब तो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को भी सूचना अधिकार के दायरे में लाने के बाद से लगता है कि आम आदमी मे इस अधिनियम के प्रति और अधिक विश्वास कायम होगा।

अभियान के निदेशक और आज की बैठक की अध्यक्षता कर रहे डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि अगले एक-दो माह के अन्दर ही सभी सदस्यों को बुला कर एक कार्यक्रम करवाया जाना है उससे पहले सम्पूर्ण जिले में सभी विभागों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य सरकारी संस्थानों से सूचना अधिकार अधिनियम से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करना है। इन जानकारियों में प्रत्येक विभाग के जन सूचना अधिकारी, सहायक जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम और फोन नं0 प्राप्त करना है। अभी तक शासन की कड़ाई के बाद भी इतनी जागरूकता भी नहीं आई है कि विभागों में अपने सूचना अधिकारी, जन सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम कार्यालयों में अंकित करवा सकें। डा0 सेंगर ने विस्तार से आगे बताया कि मात्र दस रुपये ने आम आदमी को बहुत ताकत दी है। इस ताकत का प्रयोग अपने हक के लिए करना होगा। किसी भी अधिकारी को सूचना प्राप्ति का आवेदन लेने से मना करने का अधिकार इस अधिनियम में नहीं दिया गया है। किसी भी सूचना को 30 दिनों के अन्दर देना ही देना है। ऐसा न करने पर उसके विरुद्ध प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील करनी होती है। यदि यहाँ से भी सूचना नहीं मिलतीहै तो सूचना आयोग इसकी सुनवाई करता है। यह सिद्ध होने पर कि सम्बन्धित व्यक्ति ने जानबूझ कर सूचना नहीं दी तो उस अधिकारी को 20 हजार रुपये की सजा तक का प्रावधान है।

एक अन्य सदस्य डा0 ममता ने कहा कि सूचना अधिकार के सम्बन्ध में जानकारी न होने से भी विभिन्न कार्यालय इस सम्बन्ध में गुमराह कर देते हैं। किसी भी अधिकारी को यह पता करने का अधिकार नहीं है कि सुचना माँगने वाला कौन है, वह क्यों सूचना माँग रहा है? अधिनियम के बारे में जानकारी के अभाव में आम आदमी भी इसका उपयोग करने से डरता है। बैठक में अन्य लोगों में डा0 विपिन, डा0 प्रवीन जादौन, राकेश सचान, नीलेश सिंह, दिव्या, अर्चना गुप्ता, अखिलेश सिंह, अखिलेश शर्मा, लोकेन्द्र सिंह आदि उपस्थित रहे।

विचार गोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का आयोजन


"जीवन मूल्य सास्वत होते हैं। इनमें परिवर्तन यदि होते हैं तो हमारे पहनावे, विचारों और रहन सहन के कारण होते हैं। समाज में जीवन मूल्यों का निर्धारण व्यक्ति के आचार विचार और पठन पाठन से होता है। इस प्रक्रिया में पुस्तकें अपना योगदान देतीं हैं।" उक्त विचार सामाजिक संस्था दीपशिखा द्वारा सिटी सेन्टर उरई में आज दिनांक 05 जनवरी 2010 को आयोजित विचार गोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया ने व्यक्त किये।

(मुख्य अतिथि - नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया)


बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर आयोजित गोष्ठी तथा काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ के विमोचन कार्यक्रम में जे0 पी0 चौरसिया ने आगे कहा कि "समाज के बदलते परिवेश में साहित्य में भी बदलाव आते रहे और साहित्य के इसी बदलते स्वरूप से विभिन्न कालों और धाराओं का प्रतिपादन होता रहा है। वर्तमान काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ नई पीढ़ी को एक दिशा प्रदान करेगी।"

(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ का विमोचन कार्यक्रम)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ जनपद के कोंच के युवा साहित्यकार दीपक ‘मशाल’ की प्रथम कृति है। युवा साहित्यकार वर्तमान में ग्रेट-ब्रिटेन में जैव-प्रौद्योगिकी विषय में अपने शोध कार्य को पूरा करने में लगे हैं। विज्ञान पृष्ठभूमि और बिलायती परिवेश के बाद भी दीपक का हिन्दी साहित्य प्रेम कम नहीं हुआ। वर्तमान में वे इण्टरनेट पर ब्लाग के माध्यम से लेखन कार्य में रत हैं।



(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते डॉ0 आदित्य कुमार)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते हुये दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ0 आदित्य कुमार ने कहा कि "दीपक की कवितायें समाज को दिशा प्रदान करने वालीं दिखाई देतीं हैं। इनकी कविताओं में आम जीवन में घटित हाने वाली घटनाओं की जो अनुभूति है उसे प्रत्येक मनुष्य एहसास तो करता है किन्तु उसे शब्द देने का कार्य बखूबी किया गया है। कविताओं को पढ़ते हुये आम जीवन के चित्र आँखों के सामने बनते दिखाई पड़ते हैं। विषय की गहराई बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग भाव बोध तथा तत्व विधान आदि दीपक को तथा उनकी कविताओं को प्रौढता प्रदान करते हैं जो जनपद के युवा साहित्यकारों के लिये सुखद सन्देश है।"


(काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’)

काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’ ने अपनी काव्य यात्रा और इस काव्य संग्रह के बारे में बताते हुये कहा कि "मेरी कवितायें जीवन की परिस्थितियों और पीडा से उपजी हैं। मेरा प्रयास है कि जीवन की सत्यता को सरल और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त करता रहूँ।"

संस्था दीपशिखा द्वारा इस वर्ष से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों को सम्मानित करने की दृष्टि से दो सम्मानों-धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान तथा महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान- को प्रारम्भ किया है। धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान 2009 जागेश्वर दयाल 1 विकल को देने का निर्णय लिया गया है। इस अवसर पर कोंच के श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत किया गया।

(श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत)

श्री चौरसिया जनपद में स्टिल फोटोग्राफी को स्थापित करने वालों में हैं। ज्ञात जानकारी के अनुसार जनपद का पहला तथा झाँसी मण्डल का दूसरा फोटो स्टूडियो नटराज स्टूडियो के नाम से उन्हीं ने खोला था। एस0 आर0 पी0 इण्टर कालेज कोंच में प्रवक्ता पद पर अपनी सेवायें देने के बाद वर्तमान में भी वे फोटोग्राफी से सम्बन्धित तकनीकी ज्ञान देते रहते हैं।

इससे पूर्व बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत तीतरा खलीलपुर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 डी0 सी0 द्विवेदी के वक्तव्य से हुई। डॉ0 द्विवेदी ने कहा "सत्य घटनाओं से नहीं वरन स्थितियों से निर्मित होता है। यही सत्य जब साहित्य में प्रदर्शित होता है तो मूल्यों के रूप में मनुष्य के जीवन में दिखाई देता है। जीवन मूल्य साहित्य को विशेष गरिमा प्रदान करते हैं। वर्तमान भोगवादी संस्कृति में सत्य का निष्पादन कठिन होता प्रतीत हो रहा है। इससे मूल्यों की शाश्वतता भी परिवर्तन आने शुरू हुये हैं। इन्हीं बदलावों के कारण जिस साहित्य को समाज का दर्पण अथवा समाज का निर्माता कहा जाता रहा है उसमें भटकाव आना शुरू हुआ।"



(वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी)

गोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी ने जीवन मूल्यों को मनुष्य के विकास से जोड़ते हुये कहा कि "आधुनिक विकासवादी प्रवृति मनुष्य को जीवन मूल्यों से परे ले जा रही है। भौतिकवादी संस्कृति और भौतिकतावादी सोच ने सबसे उच्च शिखर पर बैठे मनुष्य को रसातल की ओर ले जाने का कार्य किया है। संसार के समस्त जीवों मे श्रेष्ठ जीवधारी मनुष्य अपने कृत्यों से समाज और साहित्य दोनों से दूर होता जा रहा है इस कारण से जीवन मूल्यों में बदलाव देखने को मिलते हैं।"



(लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद)

लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद ने जीवन मूल्यों को लोक संस्कृति से सम्बद्ध करते हुये कहा कि "अपनी संस्कृति से विमुख होने के कारण व्यक्ति जीवन मूल्यों को विस्मृत कर रहा है। साहित्य के द्वारा समाज को दिशा देने का कार्य साहित्यकारों द्वारा किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान साहित्य से लोक संस्कृति का लोप होना जीवन मूल्यों को स्वतः ही विघटित कर रहा है। परिवार में आपसी सामन्जस्य और मूल्यों की स्थापना को लेकर भी आज नये नये स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। जीवन मूल्यों के शाश्वत स्वरूप में इन विघटन और बदलाव का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।"


(डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी)

गांधी महाविद्यालय उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी ने जीवन के क्रिया कलापों और व्यक्ति की सक्रियता को जीवन मूल्य की परिभाषा दी उनका कहना था कि "वर्तमान में साहित्य के द्वारा जो भी रचनात्मक कार्य किये जा रहे हैं वे किसी न किसी तरह के मूल्यों का निर्माण करते हैं। उन मूल्यों को किसी भी स्थिति में जीवन मूल्य नहीं कहा जा सकता जो व्यक्ति और समाज को दिशा प्रदान न कर सकें।"



(डॉ0 हरिमोहन पुरवार)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई की प्रबन्धकारिणी कमेठी के उपाध्यक्ष डॉ0 हरिमोहन पुरवार ने कहा कि "जीवन मूल्य व्यक्ति से जुडी शब्दावली है केवल साहित्य की नहीं। साहित्य से इतर व्यक्ति भी अपने क्रिया कलापों से मूल्यों का निर्माण करता है। सकारात्मक मूल्य समाज को दिशा देते हुये अपने आप में जीवन मूल्य के रूप में परिभाषित होते हैं।"



(डॉ0 आर0 के0 गुप्ता)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के वनस्पति विभाग के डॉ0 आर0 के0 गुप्ता ने कहा कि "व्यक्ति के कार्य और आचरण में निरन्तर बदलाव आ रहे हैं। जीवन मूल्यों को व्यक्ति के आचरण की पवित्रता से जोड कर देखा जाना चाहिये। आचरण और कार्य की पवित्रता का विरोधाभास अपने आप ही जीवन मूल्यों का क्षरण है। जीवन मूल्यों की स्थापना के लिये व्यक्ति को अपने कार्य और आचरण में सामन्जस्य स्थापित करना चाहिये।"

इसके साथ ही गोष्ठी में डॉ0 रामप्रताप सिंह, डॉ0 सुरेन्द्र नायक, डॉ0 भास्कर अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में गोष्ठी का संचालन डॉ0 अनुज भदौरिया, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का संचालन डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ0 राजेश पालीवाल ने किया। समारोह में संस्था के संरक्षक डॉ0 अशोक कुमार अग्रवाल, संस्था उपाध्यक्ष अलका अग्रवाल, डॉ0 सतीश चन्द्र शर्मा, डॉ0 अभयकरन सक्सेना, डॉ0 अलका रानी पुरवार, डॉ0 नीता गुप्ता, डॉ0 बबिता गुप्ता, डॉ0 नीलरतन, डॉ0 सुनीता गुप्ता, डॉ0 ममता अग्रवाल, डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव, प्रकाशवीर तिवारी, डॉ0 प्रवीण सिंह जादौन, धर्मेन्द्र सिंह, सलिल तिवारी, आशीष मिश्रा, सन्त शिरोमणि, डॉ0 राजवीर, डॉ0 के0 के0 निगम, सुभाष चन्द्रा, डॉ0 मनोज श्रीवास्तव, के साथ साथ कोंच से लोकेश चौरसिया, लक्ष्मण चौरसिया, आगरा से स्वामी चौधरी सहित जनपद के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा जालौन ने निकाला वाहन मार्च

बुन्देलखण्ड की माँग को लेकर आज दिनांक-02 जनवरी 2010 को बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा की ओर से उरई शहर में एक वाहन मार्च किया गया। इसमें दो-पहिया और चार पहिया वाहनों के साथ बुन्देलखण्ड राज्य बनाये जाने की माँग करते हुए नारे भी लगाये जा रहे थे।

दो पहिया वाहनों का मार्च

वाहन मार्च नगर के प्रमुख उत्सव गृह सिटी सेंटर से प्रारम्भ होकर शहर के मुख्य-मुख्य मार्गों से गुजरा। मच्छर चैराहा से घंटाघर, माहिल तालाब, डी0वी0कालेज होते हुए बस स्टैण्ड के रास्ते जेल रोड, जिला परिषद्, अम्बेडकर चैराहा होते हुए गाँधी चबूतरे पर एक सभा के रूप में परिवर्तित हुआ।

नारे लगाते बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता

बुन्देलखण्ड राज्य की माँग को लेकर सम्पन्न इस वाहन मार्च में बुन्देखण्ड मुक्ति मोर्चा के जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा, कार्यवाहक जिलाध्यक्ष सलिल तिवारी, छात्र मोर्चा के अध्यक्ष आदित्य व्यास के अतिरिक्त बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय मंत्री डा0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी, डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर सहित कई युवा शामिल हुए।

गांधी चबूतरे पर डॉ0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी, आशीष मिश्र एवं अन्य

गाँधी चबूतरे पर सम्पन्न सभा में डा0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी ने कहा कि बुन्देलखण्ड की माँग हक की माँग है। यदि जो लोग इसे पद और सत्ता प्राप्ति की लड़ाई मानते हैं वे कतई इस संगठन से और इस संघर्ष से न जुड़ें। उन्होंने कहा कि इसमें उन लोगों के जुड़ने की जरूरत है जो पृथक बुन्देलखण्ड राज्य की माँग को निस्वार्थ भाव से उठा सकें।

बोलते हुए डॉ दिनेश चन्द्र द्विवेदी

जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा ने कहा कि युवाओं के जोश से पार पाना अब सरकार के हाथ में नहीं है। यहाँ का युवा समझ चुका है कि हमारा भला तभी है जबकि बुन्देलखण्ड राज्य का अलग निर्माण हो जायेगा। बिना अलग राज्य के यहाँ के युवाओं को दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए संघर्ष करना होता है। उन्होंने आगे कहा कि बुन्देलखण्ड के किसानों, मजदूरों, युवाओं के हित में अब यही है कि बुन्देलखण्ड को अलग राज्य का दर्जा दे दिया जाये।

गाँधी चबूतरे पर सभी कार्यकर्ता

केन्द्रीय पदाधिकारी डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि हमारा कर्तव्य यह भी होना खहिए कि हम यहाँ के लोगों को बुन्देलखण्ड के महत्व को समझा सकें। हमारे क्षेत्र में पाँच नदियों का संगम होने के बाद भी यह क्षेत्र किसी भी रूप में पावन नहीं समझा गया। हमें आज ही यह कार्यक्रम तय करना होगा कि हम प्रत्येक वर्ष पचनदा पर एक कार्यक्रम ‘बुन्देली मेला’ के नाम से शुरू करें। उन्होंने आगे कहा कि युवा वर्ग समझे कि उसके पास नौकरी का अभाव योग्यता में कमी के कारण नहीं वरन् अवसर में कमी के कारण है। आज तक कभी बुन्देलखण्ड के योग्य लोगों को ऊँचे पदों पर नहीं आने दिया गया। हमें एक-एक आदमी के अंदर इस बात का विश्वास जगाना होगा कि बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण उसके अपने हित में है। एक किसान, मजदूर, बेरोजगार, विद्यार्थी के हित में है।

सभा स्थल पर बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता

युवा छात्र नेता आदित्य व्यास ने कहा कि जब तेलंगाना के लोग अलग राज्य के लिए संघर्ष कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? हमारे पास अपनी सम्पदा होते हुए भी हम पिछड़े हैं। बिजली का उत्पादन हम करते हैं और इसके बाद भी हमें बिजली के लिए तरसना पड़ता है। बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण हमारे अस्तित्व को तय करेगा। हमें यदि पिछड़े ही रहना है तो कोई बात नहीं और यदि हमें किसी भी रूप में स्वयं को ताकतवर बनाकर उभारना है तो बुन्देलखण्ड राज्य हर हालत में हर कीमत पर बनाना ही होगा।

सभा का सञ्चालन करते हुए कार्यवाहक अध्यक्ष सलिल तिवारी ने कहा कि अब समय मात्र सभाएं करने का नहीं है, हम पूरे जोश के साथ आगे आकर लोगों को साथ लें और अपने संघर्ष को आगे ले जाएँ।

सभी में अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। जय-जय बुन्देलखण्ड के नारों के साथ सभी इस सूचना के साथ विसर्जित की गई कि अगला कार्यक्रम 06 जनवरी को कालपी में होगा।

बुन्देलखण्ड टुडे - ऑन लाइन समाचार पत्र

बुन्देलखण्डवासियों को तथा देश-विदेश में रह रहे भारतीयों को इस बात की जानकारी देनी है कि नये वर्ष सन् 2010 से उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के शहर उरई से आन लाइन समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया जा रहा है। इस समाचार-पत्र के द्वारा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के समाचारों का प्रकाशन किया जायेगा।

समाचारों के साथ-साथ बुन्देलखण्ड से सम्बन्धित जानकारी भी समय-समय पर प्रकाशित की जायेगी। इसका उद्देश्य देश-विदेश तक बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवन्तता और सार्थकता को पहुँचाना है।

आप भी इसमें जानकारियाँ भेज कर प्रकाशित करा सकते हैं। इसके लिए आपको इसके कार्यालय से सम्पर्क करना होगा अथवा आप जानकारी सीधे bundelkhandtoday@gmail.com पर मेल कर दें।