मोमबती में लिया संकल्प भ्रष्टाचार मिटाने का



अन्ना ने दिल्ली में अनशन का मन बनाया और सरकार ने इसे बहुत गम्भीरता से नहीं लिया। अपने अतिशय जोश में सरकार ने दिल्ली पुलिस के द्वारा अन्ना को अनशन पर बैठने से पहले ही उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया। अन्ना की गिरफ्तारी की खबर जैसे ही देश में फैली उनके समर्थकों में और देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के प्रति दृढप्रतिज्ञ लोगों में एक अजब लहर सी दौड़ गई। सभी लोग सरकार के इस कृत्य को अहिंसक तरीके से सबक सिखाने के लिए कमर कसकर खड़े हो गये।

समूचा देश अन्ना के स्वर में अपना स्वर मिला रहा था तो उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन का उरई नगर भी किसी से पीछे नहीं दिखना चाहता था। बिना किसी के आवाहन पर, बिना किसी सूचना के उरई की जागरूक जनता स्वप्रेरण से सड़कों पर उतर आई। लोग छोटे-बड़े जत्थों के रूप में, जुलूस के रूप में अन्ना के समर्थन में अपने विचारों को व्यक्त करने लगे। भ्रष्टाचार की मुहिम में जिसे जो स्थान मिला उसने अनशन के लिए वहीं डेरा जमा लिया।

दिन भर के अनशन, जुलूस, पुतला दहन आदि के बाद भी लोगों का जूनून थमने का नाम नहीं ले रहा था। रात के लिए भी कुछ नया करने का विचार किया जा रहा था। इसी बीच मोमबत्ती जुलूस के रूप में एक सुझाव आया और बस उरई की जनता को रात में भी अपना समर्थन अन्ना के प्रति और अपना विरोध सरकारी रवैये के प्रति, भ्रष्टाचार के प्रति दिखाने का मौका मिल गया। 16 अगस्त के दिन सड़कों पर हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी हिस्सेदारी करते हुए उरई के जीवित होने का प्रमाण दिया तो शाम 7 बजे निकाला गया मोमबत्ती जुलूस किसी भी रूप में दिन से कम हिस्सेदारी को बयान नहीं कर रहा था।

सैकड़ों की संख्या में उरई के सभी वर्गों, सभी धर्मों के लोग और यहां तक कि राजनैतिक दलों के लोगों ने भी अपनी उपस्थिति को मोमबत्ती जुलूस में दर्ज करवाया। माहिल तालाब पर स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा से आरम्भ होकर जुलूस नगर के मुख्य मार्ग से गुजरता हुआ नगर के मध्य में स्थित गांधी चबूतरा पर रुका और वापस आकर शहीद भगत सिंह पार्क में थमा। बुद्धिजीवी, शिक्षक, चिकित्सक, इंजीनियर, व्यापारी, किसान, मजदूर, वकील, साहित्यकार, राजनेता, विद्यार्थी, पत्रकार आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति से लग रहा था कि इस बार का आन्दोलन अपने आपमें इतिहास को रचेगा।

इतिहास अपने आपको दोहराने को तैयार बैठा था और उरई नगर का युवा तथा संघर्षशील बुजुर्ग स्वयं को पीछे नहीं रखना चाहता था। ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि क्रिकेट मैच के बीच भी युवाओं में अन्ना-समर्थन और भ्रष्टाचार-विरोध का मुद्दा छाया रहा। प्रतिदिन तहसील गेट पर, शहीद पार्क में, झलकारी बाई पार्क में, जिला परिषद पर विभिन्न संगठनों द्वारा धरना दिया जाता और प्रतिदिन शाम को 7 बजे से माहिल तालाब से मोमबत्ती जुलूस का संचालन किया जाता। 16 अगस्त को मोमबत्ती जुलूस में शामिल सैकड़ों लोगों की संख्या कम नहीं हुई वरन् प्रतिदिन उसमें किसी न किसी रूप में नये-नये आयाम जुड़ते चले गये। दो दिन के बाद तो नगर के लगभग सभी मोहल्लों में मोबत्ती जुलूस निकाल कर अन्ना की सेहत की दुआ की जाती और भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का संकल्प लिया जाता।

मोमबत्ती जुलूस में नगर की विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं, रंगमंचीय संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं ने भले ही अपने-अपने बैनर से अलग-अलग जुलूस निकाला हो पर शाम के 6 बजे के बाद से देर रात 10-11 बजे तक मोमबत्ती जुलूस का निकलना जारी रहा। इन जुलूसों में गूंजते नारों से सम्पूर्ण उरई शहर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता। मोमबत्ती जुलूस की विशेष बात यह रही कि युवा वर्ग की भूमिका इसमें प्रमुखता से उभरकर सामने आई। सम्पूर्ण नगर में ऐसा आभास हो रहा था कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवर्तन करने के लिए स्वयं को सकारात्मक, सहज रूप से प्रस्तुत किये हुए है।

अन्ना की आंधी ने सरकार को छोड़कर सभी को अपने साथ ले लिया। प्रतिदिन होते धरने, अनशन और मोमबत्ती जुलूस में नगर की महिलाओं की भागीदारी भी हो रही थी किन्तु 20 अगस्त की शाम 6 बजे नगर की नामचीन महिलाओं ने स्वतन्त्र रूप से मोमबत्ती जुलूस का नेतृत्व और संचाचलन किया। मोमबत्ती जुलूस के लिए कारवां लगातार बढ़ता ही जा रहा था। कभी किसी मोहल्ले के बच्चे सड़कों पर निकल पड़ते तो कभी किसी स्कूल के छोटे विद्यार्थी भी अपने हाथों में मोमबत्ती लेकर रोशनी करने चल देते। जिसकी श्रद्धाभक्ति जिसमें थी वह उसी के सामने जाकर अपनी आस्था को प्रकट करता। कोई गांधी प्रतिमा को अपना स्थल बनाता तो कोई शहीद पार्क में, कोई रानी झांसी चैराहे पर थमता तो किसी को झलकारी बाई पार्क पसंद आता, किसी ने देवी दुर्गा को अपनी श्रद्धा के लिए चुना तो कोई महाबली हनुमान की शरण में आया।

महाविद्यालयों का, विद्यालयों का सहयोग प्रतिदिन प्राप्त हो रहा था और सकारात्मक तथा प्रसन्नता की बात यह थी कि बच्चों के अभिभावक स्वयं ही बच्चों को इसके लिए प्रेरित कर रहे थे। नगर के समस्त महाविद्यालयों के शिक्षकों, विद्यार्थियों द्वारा मोमबत्ती जुलूस में अपनी शिरकत की जा चुकी है। अपने व्यापार की बंदिश को लेकर जो व्यापारी, दुकानदार मोमबत्ती जुलूस में शामिल नहीं हो पाते हैं वे अपनी दुकान के सामने पांच दिये जलाकर बैठ जाते हैं। लग रहा है कि जैसे प्रत्येक व्यक्ति इस रोशनी में भ्रष्टाचार को समाप्त करके ही दम लेना चाहता है। बहुत से व्यक्ति ऐसे भी रहे जो नगर से बाहर कार्य पर जाने के कारण दिन में अनशन में शामिल नहीं हो पाते वे शाम को मोमबत्ती जुलूस के माध्यम से अपनी उपस्थिति को दर्ज करवा देते हैं। कुछ उत्साही नौजवानों ने तो यह भी निर्णय लिया है कि भले ही अन्ना टीम द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल बिल पास हो जाये पर शहीद पार्क में तब तक मोमबत्ती को रोशन करते रहेंगे जब तक कि भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं कर लेते हैं।

नगर के इस उत्साह को देखकर, उसके जुनून को देखकर, यहां के नागरिकों को देखकर आभास हुआ कि यह शहर अभी जिन्दा है, उसे बस एहसास कराये जाने की आवश्यकता है। संख्या बल की दृष्टि से देखें तो प्रतिदिन लगभग एक हजार के आसपास पुरुष, महिलायें, बच्चे मोमबत्ती जलाकर भ्रष्टाचार रूपी अंधियारे को समाप्त करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। ऐसे वातावरण को, जुनून को, उत्साह को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार-मुक्त भारत निर्माण में उरई शहर का भी अप्रियतम योगदान रहेगा, भले ही आज वह आसानी से दुनिया के सामने न आ पा रहा हो।