हिन्दी साहित्य परिषद्, गाँधी महाविद्यालय, उरई द्वारा विचार-गोष्ठी का आयोजन

                गांधी महाविद्यालय, उरई के हिन्दी विभाग के विद्यार्थियों द्वारा वर्तमान शैक्षिक सत्र 2012-13 के लिए हिन्दी साहित्य परिषद् का गठन किया गया। परिषद् के तत्वावधान में 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस पर एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। महाविद्यालय प्रांगण में आयोजित इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक डॉ0 रामशंकर द्विवेदी उपस्थित रहे। 

                गोष्ठी का आरम्भ मुख्य अतिथि एवं मंचासीन प्राध्यापकों द्वारा सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। तदुपरांत छात्राओं ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। 

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ0 रामशंकर द्विवेदी ने अपने अनुभवों को बताते हुए कहा कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की स्थिति यह है कि यहां पर लोग साहित्य पढ़ना ही नहीं चाहते हैं। इसके उलट बंगाल में माता-पिता अपने बच्चों में साहित्य पढ़ने के प्रति रुचि पैदा करते हैं। वहां साहित्य का अध्ययन एक प्रकार से अनिवार्य ही है। यही कारण है कि हिन्दीभाषी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रति, हिन्दी साहित्य के प्रति लोगों में रुचि देखने को नहीं मिलती है।

                अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ0 अलका नायक का कहना था कि हिन्दी का विकास तो हो रहा है किन्तु हम स्वयं ही उसके विकास में अवरोधक का काम कर रहे हैं। हिन्दी की बात यहां एक दिन तो करते हैं उसके बाद हम फिर अंग्रेजी के मोह में फंस जाते हैं। अंग्रेजी का ज्ञान आवश्यक हो सकता है किन्तु उसके लिए अपनी भाषा को भुला देना सही नहीं है। 

                भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो0 देवेन्द्र नाथ ने कहा कि स्वतन्त्रता के पूर्व हिन्दी को राजभाषा, राष्ट्रभाषा बनाने की प्रतिबद्धता लोगों में दिखाई देती थी वह स्वतन्त्रता के बाद समाप्त हो गई। आजादी के पूर्व अहिन्दीभाषियों ने ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने पर व्यापक जोर दिया था। इसमें रवीन्द्रनाथ ठाकुर, सुभाषचन्द्र बोस आदि का नाम आसानी से लिया जा सकता है।

                हिन्दी विभाग के डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी ने कहा कि वर्तमान में हिन्दी को लेकर वाह और आह की स्थिति दिख रही है। इसके द्वारा एक वर्ग वह है जो हिन्दी की जैसी स्थिति है उसी में खुश है और उसको स्थापित करने के लिए कोई कार्य नहीं कर रहा है। इसी तरह से एक वर्ग वह है जो हिन्दी के विकास को लेकर उत्साहित है और उसके विकास के लिए निरन्तर कार्य कर रहा है। हम सभी को मुख्य रूप से भाषाई विकास पर जोर देना चाहिए क्योंकि आज हिन्दी को अंग्रेजी से विरोध का सामना उतना नहीं करना पड़ रहा है जितना कि उसे अन्य भारतीय भाषाओं से करना पड़ रहा है।

                बी0एड0 विभाग के प्रवक्ता स्वप्निल भट्ट का कहना था कि हिन्दी इस देश की महारानी है और उसे राजनीतिज्ञों ने अपने वोट बैंक के लालच में नौकरानी की तरह बना दिया है। हमें स्वविकास के लिए हिन्दी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। रक्षा अध्ययन विभाग के प्रवक्ता डॉ0 अरुण कुमार का कहना था कि हिन्दी का विकास आवश्यक है पर उसके साथ ही विश्व बाजार में आने के लिए हमें दूसरी भाषाओं का ज्ञान भी होना चाहिए। इस कारण से हम भले ही अंग्रेजी अथवा कोई भी दूसरी भाषा को सीखें किन्तु अपनी राष्ट्रभाषा को भुलाने का कार्य न करें।

                गोष्ठी के अन्त में प्राचार्य प्रो00 पी0 शर्मा ने सभी को आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी का विकास आज जिस तरह से हो रहा है वह बाजार की मांग है, इस दृष्टि से हमें हिन्दी को बाजार की भाषा बनने से रोकना होगा। हिन्दी का विकास हो इसके लिए उसे जन-जन की भाषा बनाया जाना चाहिए।

                गोष्ठी का संचालन परिषद् संयोजक डॉ0 बृजेश पाण्डेय ने किया। उक्त वक्ताओं के अलावा परिषद् के सदस्यों ने तथा अन्य प्राध्यापकों डॉ0 सुनीता गुप्ता, डॉ0 ऋचा पटैरिया, डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ0 गोविन्द सुमन ने भी सम्बोधित किया।

2 टिप्‍पणियां:

जय शंकर तिवारी ने कहा…

हिन्दी साहित्य परिषद के गठन एवं विचार गोष्ठी के बेहतरीन आयोजन के लिए हिन्दी विभाग गांधी महाविद्यालय को बधाई । 'हिन्दी को बाज़ार की भाषा बनने से रोकने की बात'(सभाध्यक्ष श्री ओ पी शर्मा )तथा 'हिन्दी का विरोध अंग्रेजी से उतना नहीं जितना भारतीय भाषाओं से' (डा० राकेश नारायण द्विवेदी )--ये दोनों बातें मुझे समझ मे नहीं आ रहीं ,हो सकता है सम्प्रेषण-अंतराल हुआ हो ।

जय शंकर तिवारी ने कहा…

हिन्दी साहित्य परिषद के गठन एवं विचार गोष्ठी के बेहतरीन आयोजन के लिए हिन्दी विभाग गांधी महाविद्यालय को बधाई । 'हिन्दी को बाज़ार की भाषा बनने से रोकने की बात'(सभाध्यक्ष श्री ओ पी शर्मा )तथा 'हिन्दी का विरोध अंग्रेजी से उतना नहीं जितना भारतीय भाषाओं से' (डा० राकेश नारायण द्विवेदी )--ये दोनों बातें मुझे समझ मे नहीं आ रहीं ,हो सकता है सम्प्रेषण-अंतराल हुआ हो ।