मानवाधिकार दिवस पर डी वी कॉलेज में संगोष्ठी संपन्न

विश्व मानवाधिकार दिवस पर गोष्ठी संपन्न
स्थान- दयानंद वैदिक महाविद्यालय परिसर, उरई जालौन
आयोजक- राजनीति विज्ञान परिषद्
दिनांक - 10-12-2010
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विश्व मानवाधिकार दिवस पर दिनांक 10 दिसम्बर को दयानन्द वैदिक महाविद्यालय, उरई के राजनीतिक विज्ञान परिषद् के तत्वावधान में मानवाधिकारों की दशा एवं दिशा विषय पर एक परिचर्चा सम्पन्न हुई। जिसमें महाविद्यालय के अनेक प्राध्यापकों तथा छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।


मुख्य वक्ता सुभाष चंद्रा
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गोष्ठी
का शुभारम्भ करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष चन्द्रा ने ब्रिटेन में सन् 1215 के मैग्नाकार्टा को मानवाधिकार अवधारणा का बीज बताया जिसे फ्रांसीसी और अमेरिकी क्रान्तियों के सिद्धान्तों से बल मिला। इसी के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोकतान्त्रिक विश्व व्यवस्था में संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में इन सिद्धान्तों को शामिल किया गया। इस तरह से 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों की सार्वजनिक घोषणा की गई। मानववाधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्ति के जीवन और संरक्षण के लिए अनिवार्य हैं।

संगोष्ठी
के मुख्य अतिथि एवं डी0वी0 कालेज के प्राचार्य डॉ0 अनिल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि मानवाधिकारों का संरक्षण सभ्य समाज की आवश्यक शर्त है पर इसके लिए ऐसे सामाजिक पर्यावरण का निर्माण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर करना होगा जिसमें लोग स्वार्थ से हटकर अपने दायित्वों पर ध्यान दे सकें।

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0वी0कालेज, उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 राजेश चन्द्र पाण्डेय ने मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को आवश्यक बताया। गांधी महाविद्यालय, उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 कुमारेन्द्र ने कहा कि आज हम राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वार्थों के आधार पर ही मानवाधिकारों को परिभाषित करते हैं।

बाएं से -- शारदा अग्रवाल, नीलम मुकेश, अलका रानी पुरवार
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डी0वी0 कालेज, उरई की अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ0 अलका पुरवार ने अधिकार और कर्तव्यों को पूरक बताया। डी0वी0 कालेज, उरई की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ0 नीलम मुकेश ने कहा कि मानवाधिकारों की बात तो होती है किन्तु संरक्षण में हम अपनी भागीदारी की बात नहीं करते हैं। डीवी कालेज की इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ0 शारदा अग्रवाल ने मानवाधिकारों के निर्धारण में व्यक्तियों की भूमिका पर जोर दिया।

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0वी0 कालेज के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ0 आदित्य कुमार ने कहा कि मानवाधिकारों की अवधारणा दो विश्व युद्धों के भीषण जनविनाश के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई विश्व जनचेतना के भारी दवाब का परिणाम था। जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा मानव अधिकारों की घोषणा के रूप में अभिव्यक्ति मिली। विकसित देशों की दोहरी नीति वर्तमान में इसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन रही है।

बोलते हुए आदित्य कुमार, दाहिने बैठे हुए प्राचार्य अनिल कुमार श्रीवास्तव
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अंग्रेजी विभाग के रीडर डॉ0 मदनबाबू चतुर्वेदी ने कहा कि मानवाधिकारों का संरक्षण वे व्यक्ति कर सकते हैं जो स्वार्थ से हटकर समाज व मानवीयता के हित में सोचते हैं। डीवी कालेज के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 रामप्रताप सिंह सामाजिक कुरीतियों धार्मिक आडम्बर तथा राज्य की निरंकुशता को सबसे बड़ी बाधा बताया।

डॉ
0 राममुरारी चिरवारिया ने मानवाधिकारों के संरक्षण में बुद्धिजीवियों की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किये। डॉ0 रविकान्त का मानना था कि मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए समाज की मानसिकता में सुधार लाना आवश्यक है। आकांक्षा सक्सेना ने कहा कि आज मानवाधिकारों की चर्चा करना पब्लिटी स्टंट के रूप में दिखता है, उसमें किसी तरह की गम्भीरता नहीं दिखती है।

गोष्ठी में डॉ0 नीरज बादल, देवेन्द्र, आकांक्षा, शाहीन अख्तर, राबिया खातून, अनिल मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संचालन रविकान्त ने किया।

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